रांची। धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के वंशज सुखराम मुंडा ने भी आदिवासी समाज के लोगों के लिए सरना धर्म कोड की मांग की है। मोरहाबादी मैदान, रांची में रविवार को विभिन्न आदिवासी संगठनों के सरना धर्म कोड महाजुटान रैली में उन्होंने इसकी मांग की।
उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज की अपनी संस्कृति, विरासत और पहचान है। ऐसे में दूसरे धर्मावलंबियों की तरह इस समाज के लिए भी केंद्र सरकार सरना धर्म कोड का प्रावधान तय करे। इस अवसर पर धर्म गुरु बंधन तिग्गा ने कहा कि समय आ गया है कि अब देश के जनगणना फॉर्म में सरना आदिवासी धर्मावलंबियों के लिए अलग धर्मकोड की व्यवस्था हो। सरना धर्म कोड की मांग बहुत पहले से चली आ रही है, आदिवासी संगठन इसे लेकर कई वर्षों से मांग करते आये हैं कि उनकी भी एक अलग पहचान होनी चाहिए, पर अभी तक पिक्चर क्लियर नहीं है।
उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आदिवासी समाज के कवच सीएनटी और एसपीटी एक्ट में छेड़छाड़ करने की कोशिश की थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि झारखंड से उनका सफाया हो गया। केन्द्र सरकार भी अब सरना धर्म कोड को लेकर चेत जाये।
मंच से आदिवासी नेता करमा उरांव ने कहा कि अभी राज्य भर से आदिवासी समाज के लोग यहाँ जुटे हैं, जल्द ही भुवनेश्वर, रायपुर जैसी जगहों पर भी महारैली होगी। इसके जरिए केंद्र सरकार तक आवाज पहुंचायी जाएगी झारखंड की विधानसभा ने 11 नवंबर 2021 को एक विशेष सत्र आयोजित कर जनगणना में सरना आदिवासी धर्म के लिए अलग कोड दर्ज करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था। सरना आदिवासी धर्म कोड बिल को विधानसभा के बाद सर्वसम्मति से केंद्र सरकार को भेजा गया था। झारखंड सरकार ने कहा था कि इसके जरिए आदिवासियों की संस्कृति और धार्मिक आजादी की रक्षा की जा सकेगी। लेकिन, केंद्र सरकार ने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है। इस अवसर पर आदिवासी समाज के शिवा कच्छप, अजित तिर्की समेत हजारों केई संख्या में आम लोग मौजूद थे।
सरना धर्म कोड के बिना पहचान का संकट
मोरहाबादी मैदान में केंद्रीय सरना समिति सहित अन्य आदिवासी संगठनों के द्वारा आयोजित महाजुटान रैली में सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि सरना धर्म कोड के प्रावधान के बगैर आदिवासी समाज के सामने पहचान का संकट बना रहेगा। इसी से अपनी पहचान मिल सकेगी।
अजित तिर्की ने कहा कि अब समय आ चुका है जब सरना धर्म कोड लिया जाए। अगर केंद्र सरकार आदिवासी समाज को हमारा हक नहीं देती है तो उन्हें आगामी चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। अगर सरना धर्म कोड नहीं तो वोट भी नहीं मिलेगा। अगर 2024 के चुनाव से पूर्व केंद्र सरकार ने फैसला नहीं लिया तो दिल्ली में इसे लेकर सरकार के खिलाफ 17 करोड़ आदिवासियों का शंखनाद होगा।