रांची। देश में एक तरफ बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने के प्रयासों पर चिंतन-मंथन हो रहा है तो झारखंड में जनजातीय समुदाय की आबादी में निरंतर चिंताजनक गिरावट हो रही है। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 60 साल में आदिवासियों की तादाद लगभग 10 प्रतिशत कम हो गई है। वर्ष 1951 की जनगणना के मुताबिक एकीकृत बिहार में झारखंड के हिस्से में रहने वाले आदिवासियों की जनसंख्या कुल आबादी का 35.8 प्रतिशत थी।
वर्ष 1991 में यह 27.66 प्रतिशत, 2001 में 26.30 प्रतिशत और 2011 में घटकर 26.11 प्रतिशत हो गया। यानि 60 साल में आबादी में लगभग 10 प्रतिशत गिरावट आई। इसमें आदिम जनजातियों की संख्या में अधिक गिरावट दर्ज की गई। 2001 में इनकी संख्या जहां 3,87,000 थी, वहीं 2011 में इनकी आबादी 2,92,000 हो गई। अब एक दफा फिर 2021 की जनगणना होने के बाद जनजातीय समुदाय की आबादी का आंकड़ा सामने आ पाएगा।
आबादी कम होने के कारणों की पड़ताल जरूरी
* रोजगार की तलाश में बाहर जाने वाले आदिवासी परिवार वापस लौटे या नहीं।
* अनुसूचित जनजातियों में जन्म और मृत्यु दर की मौजूदा स्थिति।
* कृषि कार्य के बाद आदिवासी परिवार बाहर चले जाते हैं। सामान्य तौर पर उनकी अनुपस्थिति में जनगणना होती है। आबादी के आंकड़े में तो इसका प्रभाव नहीं पड़ रहा।
* किन-किन जिलों के किन-किन क्षेत्रों में अधिक गिरावट।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
आदिवासी समाज में अपने गोत्र में शादी वर्जित है। अलग-अलग गोत्र में ही शादी होती है। जहां तक आबादी के कम होने का सवाल है, इसका कोई सामान्य उत्तर नहीं दिया जा सकता। आबादी तो बढ़ती गई है। पचास-साठ सालों में आबादी के घटने का डाटा है, उसमें कई कारण हैं। आदिवासी रोजी-रोजगार को लेकर पलायन करता रहता है। जनगणना के समय संभव है, वह गांव न रहा हो। दूसरी बात, जनगणना करने वाले भी आदिवासी की आबादी कम दिखाते हैं। जो थोड़ा उदार हुए, वह किसी को हिंदू खांचे में डाल देते हैं, किसी को ईसाई, किसी को मुस्लिम। इसका भी असर जनसंख्या पर पड़ता है। एक कारण जागरूकता की कमी भी है। वे बहुत रुचि भी नहीं लेते हैं।- डा. हरि उरांव, विभागाध्यक्ष, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची विवि, रांची। (जागरण)