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कोयंबटूर में फंसे चक्रधरपुर के 96 मजदूरों की घर वापसी

चक्रधरपुर। भले ही आप रोजगार जैसे कुछ मोर्चों पर झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में इन्होंने जो किया है, वह देश भर के लिए एक उदाहरण है। इस में से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, देश-दुनिया में फैले प्रवासी मजदूरों को सहायता पहुँचाना।

पिछले साल, जब देश भर में मजदूरों की पैदल लौटने वाली तस्वीरें मीडिया की सुर्खियाँ बटोर रही थी, तब झारखंड सरकार के अनुरोध पर मजदूरों की घर वापसी वाली पहली ट्रेन चली। उसके बाद तो अनगिनत ट्रेनों, बसों और यहाँ तक कि हवाई जहाज के माध्यम से भी, मजदूरों की वापसी सुनिश्चित की गई।

अभी भी, विदेशों में दुबई, अबूधाबी से लेकर नेपाल तक, और देश के कोने-कोने से, जब कोई मजदूर मदद की गुहार लगाता है, यह सरकार उसको सहायता पहुँचाती है। झारखंड के मुख्यमंत्री और आदिवासी कल्याण मंत्री चंपई सोरेन ट्विटर पर इन मामलों को ना सिर्फ गंभीरता से लेते हैं, बल्कि इन्होंने ऐसे हजारों लोगों की मदद की है। झारखंड का राज्य प्रवासी नियंत्रण कक्ष, जो श्रम मंत्रालय के अधीन काम करता है, इन मामलों में काफी सक्रिय भूमिका निभाता है।

ताजा मामला तीन दिन पुराना है, जब कुछ मजदूरों ने कोयंबटूर (तमिलनाडु) से वापस लौटने के लिए सहायता माँगी, तो मंत्री चंपई सोरेन ने इस पर तुरंत संज्ञान लेकर जिला प्रशासन और प्रवासी नियंत्रण कक्ष को सूचित किया। अगले दिन श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने एक बस की फोटो लगाकर उन्हें सूचित किया कि सभी मजदूर वापस आ रहे हैं।

उसके बाद, राज्य सरकार के अधिकारियों ने लगातार तीन दिनों तक उस बस को मॉनिटर किया, पूरे रास्ते में उनके खाने-पीने की व्यवस्था करवाई, कुछ लोगों को मेडिकल सहायता की जरूरत पड़ी, तो वह भी दिलवाई गई, और आखिरकार वे 96 मज़दूर आज वापस लौटे, जिसमें 60 युवतियाँ हैं। आज रात जिला प्रशासन ने उनके ठहरने की व्यवस्था चाईबासा स्थित टाटा कॉलेज में करवाई है, जहाँ उनको भोजन, और मेडिकल सुविधा मिलेगी, तथा स्थानीय पुलिस इनकी सुरक्षा का ध्यान रखेगी।

कल सुबह, नाश्ते के बाद इनकी काउन्सलिंग होगी, फिर इन्हें प्रशासन द्वारा इनके गाँवों में भिजवाजा जायेगा। ज्ञात हो कि इस प्रकार वापस आने वाले मजदूरों का सारा खर्च सरकार उठाती है, फिर श्रम विभाग द्वारा उनका रेजिस्ट्रेशन कर के, उनको, उनके कौशल के आधार पर, स्थानीय स्तर पर रोजगार दिलवाने का प्रयास किया जाता है। अगर वह मजदूर अकुशल है, तब उसे मनरेगा की परियोजनाओं से जोड़ा जाता है।

सरकार की इस पहल से मजदूर भी खासे खुश हैं, और मुख्यमंत्री, मंत्रियों तथा अधिकारियों को धन्यवाद दे रहे हैं। पूरे देश में, झारखंड शायद एकमात्र राज्य है, जो विदेशों या अन्य राज्यों में रहने वाले अपने मजदूरों की इस प्रकार सहायता करता है।

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