नयी दिल्ली। केंद्र ने आदिवासी लोगों के बीच कोविड-19 टीकाकरण तेज करने के लिए बृहस्पतिवार को एक अभियान शुरू किया जिसके तहत पारंपरिक नेता और स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियों को शामिल करके टीकों के बारे में मिथकों, गलतफहमियों और डर को खत्म करने पर है।
आदिवासी मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाला ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलेपमेंट फेडरेशन (टीआरआईएफईडी) इस अभियान को लागू कर रहा है जो छत्तीसगढ़ में बस्तर और मध्य प्रदेश में मांडला से बुधवार को शुरू हुआ। वह संयुक्त राष्ट्र बाल आपात कोष (यूनीसेफ) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ मिलकर इस अभियान को लागू करेगा। अधिकारियों के मुताबिक, इस अभियान का उद्देश्य करीब 50 लाख आदिवासियों और वन वासियों के बीच टीकाकरण को लेकर जागरूकता पैदा करना है। इस अभियान के तहत 309 जिलों में 50,000 से अधिक गांव आएंगे।
आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि यह अभियान अनुसूचित जनजातियों के साथ मजबूत संबंध बनाने का मौका देता है। उन्होंने कहा, “कोविड-19 टीकाकरण के संबंध में कई मिथक और भ्रम हैं। यह अभियान इन बाधाओं को हटाने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह वक्त है जब संभावित तीसरी लहर के मद्देनजर टीकाकरण के बारे में हम जागरूकता बढाएं। हम तीसरी लहर का इंतजार नहीं करेंगे बल्कि अपने लोगों के आसपास एक सुरक्षा कवच बनाएंगे।”
इस अभियान का उद्देश्य मिथकों और गलतफहमियों को दूर करना है जैसे कि टीका बच्चों और महिलाओं के लिए नहीं है और टीका लगवा चुका व्यक्ति फिर से संक्रमित नहीं हो सकता। एक अधिकारी ने कहा, “हमें सही संदेश भेजने की आवश्यकता है कि टीका गंभीर बीमारियों और मौत होने से बचाता है… कई लोगों को लगता है कि टीके से ताकत कम हो जाती है जिससे उनकी आजीविका पर असर पड़ सकता है या उन्हें टीका लगवाने के बाद शराब से दूर रहना होगा।”
उन्होंने कहा, “कुछ लोग तो कोविड की मौजूदगी ही नकारते हैं और इसे महज ‘सर्दी और खांसी’ बताते हैं। कई ग्रामवासियों और दिहाड़ी मजदूरों को लगता है कि उनमें पहले ही रोग प्रतिरोधक क्षमता है।”
अधिकारी ने कहा कि आदिवासी लोगों का स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियों और पारंपरिक नेताओं में अधिक भरोसा होता है इसलिए इन मिथकों को तोड़ने के लिए इन लोगों को शामिल किया जाएगा।