भोपाल। मध्य प्रदेश की सियासत में अब आदिवासी की अहमियत तेजी से बढ़ रही है। सत्ताधारी दल भाजपा और विपक्षी दल कांग्रेस ने इस वर्ग का दिल जीतकर आगामी समय में होने वाले पंचायत, नगरीय निकाय से लेकर वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव की जीत के लिए सियासी बिसात पर चालें चलना तेज कर दी है । यही कारण है कि आदिवासी केंद्रित राजनीति का दौर तेज होने के आसार बनने लगे है।
राज्य की राजनीति की सत्ता की राह को फतह करने में जनजातीय वर्ग की अहम् भूमिका रही है, इस वर्ग ने जिस दल का साथ दिया, उसके लिए सरकार बनाना आसान रहा है। दोनों ही राजनीतिक दल इस बात से वाकिफ है और उन्होंने इसके लिए जमीनी तैयारी तेज कर दी है। राज्य में 21 प्रतिषत से ज्यादा आबादी आदिवासी वर्ग की है, इसी के चलते 84 विधानसभा क्षेत्र ऐसे है जहां आदिवासी बाहुतायत में है। कुल मिलाकर इन क्षेत्रों में जीत व हार आदिवासियों के वोट पर निर्भर है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा इन 84 में से 34 सीट पर जीत हासिल कर सकी थी, जबकि वर्ष 2013 में भाजपा ने 59 क्षेत्रों में जीत दर्ज की थी। इस तरह पार्टी को वर्ष 2013 की तुलना में 2018 में 25 सीटों पर नुकसान हुआ था।
राज्य में 47 विधानसभा क्षेत्र आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है। इन क्षेत्रों में वर्ष 2013 के चुनाव मे भाजपा ने 31 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आईं थीं।वहीं वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा सिर्फ 16 सीटें ही जीत सकी और कांग्रेस का आंकड़ा 30 सीटों पर पहुॅच गया। परिणामस्वरुप भाजपा केा सत्ता से बाहर होना पड़ा था।
आदिवासी वेाट बैंक पर दोनों दल अपनी पकड़ केा मजबूत बनाए रखना चाहते है, यही कारण है कि इन दिनों आदिवासी हितैषी होने का दंभ भरा जा रहा है। भाजपा ने 15 नवंबर केा बिरसामुंडा की जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाया और इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए। अब 22 नवंबर को मंडला में एक भव्य कार्यक्रम होने वाला है। यह जनजातीय गौरव सप्ताह के समापन का कार्यक्रम है। इसी तरह टंटया भील के बलिदान दिवस पर इंदौर के पातालपानी में चार दिसंबर को एक समारोह होने जा रहा है।
एक तरफ जहां भाजपा आदिवासियों मे ंपैठ बढ़ाने की जुगत में लगी है तो दूसरी और कांग्रेस भी इस वर्ग में अपने जनाधार को बरकरार रखना चाह रही है। यही कारण है कि 24 नवंबर को जनजातीय वर्ग के विधायकों और नेताओं की भोपाल में बैठक बुलाई जा रही है। दोनों राजनीतिक दलों की बढती सक्रियता यह संदेश देने लगी है कि उनके लिए आदिवासी वोट बैंक सत्ता की राह को आसान बना सकता है, लिहाजा उन्होंने जमीनी तौर पर इस वर्ग तक पहुॅचने की मुहिम केा तेज कर दिया है।