रांची। कल भारत मे रेकार्ड 1 करोड़ से ज्यादा लोगों को कोरोना वायरस की वैक्सीन लगाई गई, जो कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। लेकिन क्या आपने सोचा है कि इतनी बड़ी उपलब्धि के दिन, टॉप 10 राज्यों की सूची में झारखंड का नाम क्यों नहीं है?
हमारी टीम ने इस संबंध में कई अधिकारियों से बात की, और जो सच निकल कर आया, वह चौंकाने वाला है।
झारखंड में वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार के पीछे सबसे बड़ा कारण वैक्सीन का असामान्य वितरण है। राज्य को जब भी वैक्सीन मिलती है, तब स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी उसे जिलों की आबादी के आधार पर बाँट देते हैं। आपको लगता होगा कि यह बिल्कुल सही तरीका है, लेकिन नहीं, सारी दिक्कत इसी प्रक्रिया की वजह से है। राज्य में रांची और पूर्वी सिंहभूम जैसे कुछ जिले हैं, जो हर दिन 25-30 हजार वैक्सीन लगाने की क्षमता रखते हैं, तो उन्हें वैक्सीन मिलते साथ खत्म हो जाती है, जिसकी वजह से, अगले दिन वहाँ वैक्सीन की कमी हो जाती है।
वहीं, दूसरी ओर, खूंटी, गढ़वा, साहिबगंज, पच्छिमी सिंहभूम, गोड्डा, पाकुड़ जैसे कई जिले हैं, जहाँ वैक्सीन की खपत दिन में 4-5 हजार भी नहीं है, तो इन में से कई जिलों के पास 20- 30- 40 हजार वैक्सीन का भंडार जमा हो गया है।
चूंकि वैक्सीन वितरण की सारी प्रक्रिया ऑनलाइन है, इसलिए इन भंडारण वाले जिलों की वजह से, केंद्र सरकार को लगता है कि राज्य में अभी भी वैक्सीन के 4-5 लाख डोज उपलब्ध हैं, इसलिए वे भी वैक्सीन का नया कोटा नहीं भेजते। नया स्टॉक ना मिलने की वजह से, उन जिलों को वैक्सीन नहीं मिल पाती, जहां इसकी खपत ज्यादा है, जबकि बाकी जिलों में स्टॉक में रखे हुए वैक्सीन के खराब होने का भी खतरा रहता है।
फिर, इसका समाधान क्या है?
इसका समाधान बिल्कुल आसान है। सभी जिलों को आबादी के आधार पर वैक्सीन देने की जगह, पिछले 30 दिनों की उनकी खपत का औसत निकाला जाये, और उसी आधार पर, उन्हें अधिकतम 3-4 दिन का स्टॉक रखने की इजाजत दी जाये। अगर किसी जिले के पास उस से ज्यादा स्टॉक है, तो उसे अन्य जिलों को भेजा जाये।
इस प्रकार, हम उपलब्ध वैक्सीन का ना सिर्फ बेहतर उपयोग कर पायेंगे, बल्कि, तेजी से स्टॉक खत्म होने पर, केंद्र से वैक्सीन भी आसानी से मिल सकेगी। तभी जाकर राज्य में वैक्सीनेशन की रफ्तार तेज हो सकेगी। स्वास्थ्य मंत्री जी, क्या आप सुन रहे हैं?