Connect with us

Hi, what are you looking for?

Adiwasi.com

Exclusive

झारखंड से रघुबर दास की “विदाई” के मायने

कल देर रात झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुबर दास को ओडिशा का राज्यपाल बना दिया गया। इस खबर के आने के बाद, राज्य के भाजपा नेता उन्हे लगातार बधाई संदेश दे रहे हैं, लेकिन पार्टी के अंदरखाने से छन कर आ रही खबरें कुछ और कहती हैं।

पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का स्पष्ट तौर पर मानना है कि भाजपा में रघुबर दास के विरोधी, उन्हें झारखंड की राजनीति से दूर करने में सफल हो गये। पिछले चुनावों में बुरी तरह हारने के बावजूद, उन्होंने कभी भी राज्य के बाहर कोई पद लेना स्वीकार नहीं किया। सूत्रों के अनुसार, पहले भी उन्हें राज्यसभा सीट ऑफर की गई थी, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया था, क्योंकि उन्हें लगता था कि उनके पास राज्य में “वापसी का मौका” है।

बहरहाल, राज्यपाल के पद पर नियुक्ति का मतलब यह है कि अब यह मौका खत्म हो चुका है। राज्यपाल का पद वास्तव में उनके राजनैतिक कार्यकाल की एक सम्मानजनक विदाई का तरीका है, क्योंकि अगर वे बंगाल जैसे किसी विपक्षी दल के शासन वाले राज्य में भेजे गए होते, शायद राजनीति की थोड़ी संभावना होती, लेकिन ओडिशा सरकार के केंद्र के साथ मधुर संबंध हैं, तो वह संभावना भी नहीं बची है।

झारखंड भाजपा से उनकी विदाई का मतलब यह है कि प्रदेश में तीन गुटों (रघुबर दास, अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी) में बंट चुकी भाजपा का एक धड़ा अब कम हो गया है। तो क्या यह बाबूलाल मरांडी गुट के लिए शुभ संकेत है? यह सवाल तब ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, जब कि हाल में हुई बाबूलाल मरांडी की “संकल्प यात्रा” रघुबर दास के गृह क्षेत्र में बुरी तरह से फ्लॉप हुई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जमशेदपुर में हुये कार्यक्रम में छात्रों को बैठा कर, सीटें भरी दिखाई गई थी।

वैसे इस कहानी की स्क्रिप्ट शायद तभी लिखी जा चुकी थी, जब भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने बाबूलाल मरांडी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष चुना था। उसके बाद से, कभी बैनर में फोटो गायब कर, तो कभी आदिवासी डॉट कॉम की ऑनलाइन पोल में आईटी सेल की एकतरफा वोटिंग द्वारा बाबूलाल मरांडी को हरवा कर, रघुबर दास की टीम स्वयं को श्रेष्ठ (एवं मुख्यमंत्री पद का दावेदार) बताने का पुरजोर प्रयास कर रही थी। चुनावों के ठीक पहले, ऐसे प्रयास पार्टी के लिए कितने आत्मघाती हो सकते हैं, इसका अंदाजा केंद्रीय नेतृत्व को हुआ होगा, जिसका परिणाम अब सामने आया है।

वैसे भी, झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में, अपने स्वभाव की वजह से रघुबर दास की छवि एक आदिवासी- विरोधी मुख्यमंत्री की रही है। उनका नाम सामने आते ही, कभी मंच पर से लोगों को दुत्कारने की, तो कभी आंदोलन करती महिलाओं पर लाठी चार्ज करवाने की तस्वीरें सामने आती हैं। इसके अलावा गोड्डा में आदिवासियों की जमीन जबरन छीन कर अडानी समूह को देना और पत्थलगड़ी की वजह से हजारों आदिवासियों पर मुकदमे दायर करवाना उनकी ऐसी गलतियां थी, जिसके लिए आदिवासी समाज शायद उन्हें कभी माफ नहीं कर पायेगा।

झारखंड से रघुबर दास की विदाई ने सरयू राय समेत कई अन्य बागी नेताओं की पार्टी में वापसी का रास्ता खोल दिया है। अगर ऐसा होता है तो कोल्हान में पिछली बार सभी 14 सीटों पर हार चुकी भाजपा, लगभग आधी सीटों पर आसानी से वापसी कर सकती है। चूंकि अर्जुन मुंडा पहले से ही राज्य से बाहर हैं, तो वे स्वतंत्र तौर पर निर्णय ले सकेंगे, अपनी टीम बना सकेंगे और पार्टी को अपने हिसाब से चला सकेंगे। लेकिन, झाविमो से लौटने के बाद जनता में उनकी स्वीकार्यता को देखना दिलचस्प होगा।

रही बात विपक्षी दलों की, तो विधायक सरयू राय समेत अन्य दलों के लिए रघुबर दास पर हमला करना और उनके बहाने भाजपा को घेरना आसान होता था, जो अब नहीं हो पायेगा। झारखंडी बनाम बाहरी के मुद्दे का असर भी अब कम हो जायेगा।

भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के रुख को देख कर यह कहा जा सकता है कि कम से कम लोकसभा चुनावों तक, पार्टी बाबूलाल मरांडी के काम में बाकी नेताओं का हस्तक्षेप नहीं चाहती। भाजपा के पास राज्य के 14 में से 12 सांसद (आजसू सहित) हैं, और पार्टी इसे बरकरार रखने या इससे बेहतर करने का प्रयास करेगी। लेकिन अगर यह संख्या घटती है, तो बाबूलाल मरांडी फिर से विरोधियों के निशाने पर होंगे, और तब शायद विधानसभा चुनावों में पार्टी अपनी रणनीति बदलने हेतु मजबूर हो जायेगी।

कुल मिलाकर, भाजपा नेतृत्व के इस चौंकाने वाले निर्णय ने झारखंड की राजनीति को झकझोर कर रख दिया है। भाजपा के धुर विरोधियों ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि रघुबर दास इस प्रकार प्रदेश की राजनीति से बाहर कर दिए जाएंगे। भाजपा सामान्यतः नेताओं को 75 वर्ष के बाद मार्गदर्शक मंडल में भेजती है, लेकिन अगर इस बार यह परिपाटी टूटी है, तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे।

Share this Story...

You May Also Like

Jharkhand

रांची। कोल्हान में कांग्रेस सांसद तथा पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा के भाजपा में शामिल होने के बाद अटकलों का दौर...

Jharkhand

रांची। झारखंड में #INDIA गठबंधन की सरकार ने विश्वास मत जीत लिया है। विधानसभा में हुए शक्ति परीक्षण में सत्ता पक्ष को 47 वोट...

Exclusive

पिछले दशक की शुरुआत में केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार सत्ता में थी। इस सरकार पर कोयला घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, 2G घोटाला...

Jharkhand

रांची/ खूँटी । झारखंड राज्य के स्थापना दिवस और भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज खूँटी के...

error: Content is protected !!